चुलबुली रात ने - (हाइकु-संग्रह)
रचनाकार- डॉ0 सुधा गुप्ता
संस्करण- अप्रैल-2006
मूल्य- 125 रुपए
प्रकाशक-पुष्करणा ट्रेडर्स, महेन्द्रू, पटना
पक्की जिल्द, पृष्ठ-150
--------
इस संग्रह में डॉ0 सुधा गुप्ता ने अपनी 141 हाइकु कविताओं को 150 पृष्ठों पर एक-एक सजाकर प्रस्तुत किया है। पुस्तक देखने से ही मन मोह लेती है। पढ़ने के बाद अधिकतरतर हाइकु, हाइकुकार द्वारा पकड़े गए प्रकृति के किसी क्षण विशेष की अनुभूति से पाठक को भी जोड़ देते हैं। वही दृश्य सामने उपस्थित होने लगता है आहिस्ता ..... आहिस्ता.... यही एक सफल हाइकुकार की विशेषता होती है। किन्तु यह हुनर बहुत आसानी से नहीं आता, बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है हाइकु की रचना के लिए। डॉ0 सुधा गुप्ता के हाइकु एक अलग तरह का अहसास कराते हैं। उनके अनेक हाइकुओं के दृश्यबिम्ब अन्य हाइकुकारों के हाइकुओं में अनायास ही आ जाते हैं। इसका संकेत सुधा जी ने अपनी भूमिका में किया है। इस महत्त्वपूर्ण संग्रह का भरपूर स्वागत होगा। कुछ हाइकु इसी संग्रह से-
बर्फ़ के फाहे
आहिस्ता गिर रहे
धुनी रुई से (पृ0-43)
मेघ मुट्ठी में
कैद चाँद फिसला
निकल भागा (पृ0-50)
बज उठते
सन्नाटे के घुँघरू
पाखी के स्वर (पृ0-59)
गुल्लक फोड़
चुलबुली रात ने
बिखेरे सिक्के (पृ0-82)
फूलों की राखी
सजा के कलाई में
घूमे वसंत (पृ0-132)
नीला कालीन
चर गए शशक
दूब के धोखे (पृ0-143)
-समीक्षक -
डा० जगदीश व्योम
रचनाकार- डॉ0 सुधा गुप्ता
संस्करण- अप्रैल-2006
मूल्य- 125 रुपए
प्रकाशक-पुष्करणा ट्रेडर्स, महेन्द्रू, पटना
पक्की जिल्द, पृष्ठ-150
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इस संग्रह में डॉ0 सुधा गुप्ता ने अपनी 141 हाइकु कविताओं को 150 पृष्ठों पर एक-एक सजाकर प्रस्तुत किया है। पुस्तक देखने से ही मन मोह लेती है। पढ़ने के बाद अधिकतरतर हाइकु, हाइकुकार द्वारा पकड़े गए प्रकृति के किसी क्षण विशेष की अनुभूति से पाठक को भी जोड़ देते हैं। वही दृश्य सामने उपस्थित होने लगता है आहिस्ता ..... आहिस्ता.... यही एक सफल हाइकुकार की विशेषता होती है। किन्तु यह हुनर बहुत आसानी से नहीं आता, बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है हाइकु की रचना के लिए। डॉ0 सुधा गुप्ता के हाइकु एक अलग तरह का अहसास कराते हैं। उनके अनेक हाइकुओं के दृश्यबिम्ब अन्य हाइकुकारों के हाइकुओं में अनायास ही आ जाते हैं। इसका संकेत सुधा जी ने अपनी भूमिका में किया है। इस महत्त्वपूर्ण संग्रह का भरपूर स्वागत होगा। कुछ हाइकु इसी संग्रह से-
बर्फ़ के फाहे
आहिस्ता गिर रहे
धुनी रुई से (पृ0-43)
मेघ मुट्ठी में
कैद चाँद फिसला
निकल भागा (पृ0-50)
बज उठते
सन्नाटे के घुँघरू
पाखी के स्वर (पृ0-59)
गुल्लक फोड़
चुलबुली रात ने
बिखेरे सिक्के (पृ0-82)
फूलों की राखी
सजा के कलाई में
घूमे वसंत (पृ0-132)
नीला कालीन
चर गए शशक
दूब के धोखे (पृ0-143)
-समीक्षक -
डा० जगदीश व्योम
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